खबर कुशीनगर,, कुशीनगर मेडिकल कॉलेज बना दलालों का अड्डा।

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डेस्क, आपकी आवाज़ न्यूज, कुशीनगर

✓ मेडिकल कॉलेज के कुछ चिकित्सकों की सरपरस्ती में मरीजों को निजी अस्पतालों में भेजने का चल रहा है खेल।

✓ अंधेरा होते ही निजी अस्पतालों के एम्बुलेंस रविंद्रनगर स्थित मेडिकल कॉलेज कैंपस में जमा लेते हैं डेरा।

✓ शाम ढलते ही दर्जनों दलाल मेडिकल कॉलेज के इमरजेंसी वार्ड, एम सी एच वार्ड, जनरल वार्ड और मुख्य गेट के आस पास डाल देते हैं डेरा।

✓ दलालों द्वारा मरीजों को हायर सेंटर रेफर के नाम पर पहुंचा देते हैं पड़रौना स्थित निजी अस्पतालों में।

✓ शाम होते ही दर्जनों निजी एंबुलेंस पहुंच जाती हैं मेडिकल कॉलेज के परिसर में।

✓ दलाल और मेडिकल कॉलेज के स्वास्थ्यकर्मियों की मिली भगत से, मरीज खरीद फरोख्त का होता है खेल।

-✓ हायर सेंटर रेफर के नाम पर पड़रौना के ही निजी अस्पतालों में मरीजों का पहुंचा कर किया जाता है आर्थिक शोषण।

✓ मेडिकल कॉलेज के आस पास चार दर्जन से अधिक निजी अस्पताल हो रहे हैं संचालित।

✓ निजी अस्पतालों के दलाल पूरी रात मेडिकल कॉलेज में रहते हैं सक्रिय।

✓ मानक विहीन निजी अस्पतालों पर स्वास्थ्य विभाग के उच्चाधिकारियों की बरसती है कृपा।

✓ खबरों के प्रकाशित होने पर भी आलाधिकारियों द्वारा नहीं की जाती कोई कारवाई।

✓ मेडिकल कॉलेज से कैसे दलालों द्वारा मरीजों को निजी अस्पतालों में भेजा जाता है?

इस पुरे विडियो को जरूर देखिएगा कि कैसे एक मरीज को हायर सेन्टर के लिए रेफर किया जाता है लेकिन दलालों के चंगुल में फस कर छावनी स्थित निजी अस्पताल में पहुंचा दिया जाता है।

जब कोई मरीज शाम इलाज कराने हेतू मेडिकल कॉलेज पहुंचता है तो उसके पहुंचने के आधे घंटे बाद साथ आए परिजनों को ऐसा महसूस होता है कि मरीज की हालत अब पहले से कुछ बेहतर है, और फिर वो सुकून की सांस लेने लगता है, “लेकिन” आने वाले दो या तीन घंटों में उनके साथ क्या होगा इसका तनिक भी एहसास नहीं होता है!

आगे….फिर रात 9 बजे के बाद साथ आए परिजनों को “मरीज की हालत ठीक नहीं हो रही है” इन्हे आप लोगों को गोरखपुर मेडिकल कॉलेज या एम्स गोरखपुर ले जाना पड़ेगा। ये कह कर मरीज को हायर सेन्टर के लिए रेफर कर दिया जाता है। फिर यहीं से शुरू होता है मेडिकल कालेज में घूम रहे दलालों का खेल। जो की मेडिकल कॉलेज के इमरजेंसी वार्ड, एम सी एच वार्ड, और जनरल वार्ड में शाम होते ही इन सभी वार्डों की परिक्रमा करना शुरू कर देते हैं। जैसे ही इन्हे रेफर पेपर मिलता है डोक्टरों द्वारा बता दिया जाता है कि, आप लोगों को गोरखपुर जाने में समय लगेगा, इससे अच्छा होगा पड़रौना छावनी में कई सारे अच्छे अस्पताल हैं वहीं चले जाइए! ये कहते हुए उनके द्वारा दलालों के तरफ इशारा कर दिया जाता है फिर क्या ये दलाल उन्हें वहीं पहुंचते हैं जहां मेडिकल कॉलेज के डॉक्टरों की कमीशन तय रहती है।

फिर दलाल उन्हें बाहर लगे निजी अस्पतालों के एम्बुलेंस में रखते हैं और हवा की गति से उन्हे उन तमाम निजी अस्पतालों में पहुंचा देते हैं। जहां उनके साथ जांच और इलाज के नाम पर भारी भरकम बिल पकड़ा दिया जाता है।

✓ चिकित्सकों को क्या है फायदा?

मेडिकल कॉलेज में कार्यरत कुछ चिकित्सकों को प्रति मरीज बैठे बिठाए दस हजार से बीस हजार तक की मोटी कमीशन मिल जाया करती है, जिसमे जिला अस्पताल के डॉक्टरों को किसी तरह का कोई जोखिम नहीं उठाना पड़ता है, बस मरीज भेंजो और उनका जेब ढीला होते ही इनके कमीशन इनके हाथ पहुंच जाता है।

✓ सरकारी अस्पतालों में इलाज के लिए कौन आता है?

समाज के वे लोग जो किसी न किसी कारणवश आर्थिक रूप से परेशान हो या फिर समाज के निचले और मध्यम वर्ग के लोग जिनकी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं होती ऐसे लोग सरकारी अस्पतालों में मुफ्त इलाज की उम्मीद लिए यहां पहुंचते तो हैं पर सरकार की इस नीति पर चुना लगाने वाले भी कुशीनगर जनपद के मेडिकल कॉलेज में अपना पांव पसारे हुए हैं जिसका खामियाजा आम जनता को भुगतना पड़ता है।

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